Study World: B.A. Political Science Notes in Hindi - विस्तारपूर्वक विषय समर्थन
प्रश्न 1. विज्ञान क्या है ?
उत्तर- किसी विषय के पूर्ण ज्ञान को विज्ञान माना जाता है। इसमें तथ्यों के आधार पर कुछ सामान्य तथा शाश्वत सिद्धान्त निर्धारित किये जाते हैं जो सार्वभौमिक होते हैं।
प्रश्न 2. 'पॉलिटिक्स' ग्रन्थ किसने लिखा था ?
उत्तर- 'पॉलिटिक्स' ग्रन्थ अरस्तू ने लिखा था।
प्रश्न 3. राजनीति विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
उत्तर- राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह अंग है जिसके अन्तर्गत मानवीय जीवन के राजनीतिक पक्ष का और जीवन के इस पक्ष से सम्बन्धित राज्य, सरकार तथा अन्य सम्बन्धित संगठनों का अध्ययन किया जाता है। डॉ. हसजार और स्टीवेन्स के अनुसार, "राजनीति विज्ञान अध्ययन का वह क्षेत्र है जो प्रमुखतया शक्ति सम्बन्धों का अध्ययन करता है।
प्रश्न 4. 'राजनीति' को परिभाषित कीजिए।
उत्तर- विद्वानों के मतानुसार हिन्दी शब्द 'राजनीति' और अंग्रेजी शब्द 'पॉलिटिक्स' एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। राजनीति (Politics) शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के 'Polis' शब्द से हुई है, जिसका अर्थ उस भाषा में नगर-राज्य (City-State) होता है, लेकिन अब धीरे-धीरे राज्य का स्वरूप बदल गया और उसका स्थान आधुनिक राज्यों ने लके अध्ययन पर जोर देता है। राजनीति विज्ञान के परम्परागत दृष्टिकोण के अन्तर्गत राज्य सरकार तथा औपचारिक राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन पर बल दिया जाता है।
प्रश्न 7. आधुनिक राजनीति विज्ञान के उदय के कोई दो कारण बताइए। अध्ययन में आनुभाविक शोध की प्रविधियों
उत्तर- (1) राजनीतिक संस्थाओं और संगठनों के को काम में लेने की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण, (2) परम्परागत दृष्टिकोण की कमियों को दूर करने के कारण, जिससे अध्ययन को अधिक वैज्ञानिक बनाया जा सके, आधुनिक राजनीति विज्ञान का उदय हुआ।
प्रश्न 8. परम्परागत एवं आधुनिक राजनीति विज्ञान के मध्य चार अन्तर लिखिए।
उत्तर- (1) परिभाषा के सम्बन्ध में अन्तर- परम्परावादी विचारक राजनीति विज्ञान को 'राज्य' एवं 'सरकार' के अध्ययन का विज्ञान मानते हैं जबकि आधुनिक विचारक राजनीति विज्ञान की विषय-वस्तु 'राज्य' नहीं मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार को मानते हैं।
(2) मूल्यों के सम्बन्ध में अन्तर- परम्परावादी विचारक मूल्यों में आस्था रखते हैं जबकि आधुनिक विचारक मूल्य निरपेक्षता का दावा करते हैं।
(3) उद्देश्यों की दृष्टि में अन्तर- परम्परावादी विचारक राजनीति विज्ञान का उद्देश्य श्रेष्ठ जीवन की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना तथा व्यक्ति के श्रेष्ठ जीवन के मार्ग को प्रशस्त करना मानते हैं, इसके विपरीत आधुनिक विचारक मानते हैं कि राजनीति विज्ञान का उद्देश्य ज्ञान के लिए ज्ञान प्राप्त करना है।
(4) अध्ययन पद्धतियों के सम्बन्ध में अन्तर- परम्परावादी विचारक राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए मुख्यतः दार्शनिक, नीतिशास्त्रीय, ऐतिहासिक, विधिक, वर्णनात्मक एवं तुलनात्मक पद्धति का सहारा लेते हैं वहीं आधुनिक विचारक वैज्ञानिक तकनीकों एवं प्रविधियों को काम में लेते हैं।
प्रश्न 9. परम्परागत राजनीति विज्ञान की किन्हीं चार विशेषताओं को बताइए।
उत्तर-(1) परम्परावादी राजनीति विज्ञान में राजनीतिक व्यवस्थाओं के बारे में कोई कल्पना मस्तिष्क में कर ली जाती है और फिर उस कल्पना को रचनात्मक रूप दिया जाता है। (2) परम्परागत राजनीति विज्ञान उपदेशात्मक है और नैतिकता तथा राजनीतिक मूल्यों पर विशेष बल देता है। (3) परम्परागत राजनीति विज्ञान मूल रूप से मूल्य- प्रधान है और इसलिए यह आदर्श राज्य-व्यवस्था की स्थापना का समर्थक है। (4) परम्परागत राजनीति विज्ञान का अध्ययन व्यक्तिनिष्ठ या व्यक्ति सापेक्ष सत्य को प्रस्तुत करता है।
प्रश्न 10. राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान मानव-क्रियाओं, शक्ति, राज-व्यवस्था एवं निर्णय-प्रक्रिया का अध्ययन करता है। आधुनिक राजनीति विज्ञान का नवीनतम विकास उत्तर-व्यवहारवाद के रूप में हुआ है और इसने राजनीति विज्ञान के अध्ययन में मूल्यों को उचित स्थान दिया है।
प्रश्न11. राजनीति विज्ञान की परम्परागत तथा आधुनिक परिभाषाएँ किस प्रकार अलग हैं?
उत्तर- परम्परागत राजनीति विज्ञान के विचारक राजनीति विज्ञान को 'राज्य' तथा 'सरकार' के अध्ययन का विषय मानते हैं जबकि आधुनिक दृष्टिकोण के विचारक राजनीति विज्ञान को शक्ति एवं सत्ता का विज्ञान मानते हैं। आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान का अध्ययन विषय राज्य नहीं अपितु व्यक्ति का राजनीतिक व्यवहार है।
प्रश्न 12. दो कारण बताइए कि राजनीति विज्ञान को कला क्यों कहा जा सकता है?
उत्तर- (1) ज्ञान को वास्तविक जीवन में प्रयोग करना ही कला है। इस मापदण्ड से राजनीति विज्ञान निश्चित ही एक कला है, क्योंकि यह हमें आदर्श नागरिक बनाना सिखाता है।
(2) राजनीति से विज्ञान की अपेक्षा कला का अधिक बोध होता है क्योंकि राज्य का संचालन किस रूप में हो, क्रियात्मक दृष्टि से वह कैसा व्यवहार करे, इन समस्त बातों का प्रतिपादन होता है।
प्रश्न 13. राजनीति विज्ञान की आधुनिक अवधारणा के चार लक्षण लिखिए। अथवा राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- (1) मानवीय व्यवहार तथा प्रक्रियाओं के अध्ययन पर बल। (2) शक्ति के अध्ययन पर बल। (3) शोध एवं सिद्धान्त में घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित होना। (4) अन्तर अनुशासनात्मक दृष्टिकोण अपनाना।
प्रश्न 14. राजनीति विज्ञान के परम्परागत परिप्रेक्ष्य को ' संकीर्ण' क्यों कहा जाता है? दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- पहला कारण, परम्परागत राजनोति विज्ञान का अध्ययन पाश्चात्य राज्यों की शासन व्यवस्था की संकीर्ण परिधि में किया गया है जिसमें साम्यवादी जगत तथा तीसरी दुनिया के विकासशील देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं की ओर ध्यान नहीं दिया गया। दूसरा कारण, पाश्चात्य राज्यों की परिधि में रहते हुए इन लेखकों ने केवल लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाओं को ही अध्ययन का केन्द्र-बिन्दु बनाया तथा इनका अध्ययन कल्पना और दर्शन पर आधारित रहा
प्रश्न 15. व्यवहारवाद का उदय क्यों हुआ ?
उत्तर- द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् राजनीति विज्ञान में भी अन्य सामाजिक विज्ञानों की भाँति एक ऐसी धारणा की आवश्यकता अनुभव हुई जो अत्यधिक उपयोगी, व्यावहारिक तथा वास्तविक हो, जिसमें कल्पनाओं तथा मूल्यों का कोई भी स्थान तथा महत्त्व न हो और जिसके द्वारा राजनीतिक समस्याओं का समाधान व्यावहारिक आधार पर किया जा सके, इसी कारण व्यवहारवाद का उदय हुआ।
प्रश्न 16. व्यवहारवाद क्या है ?
उत्तर- व्यवहारवाद एक बौद्धिक प्रवृत्ति, एक अध्ययन पद्धति, आन्दोलन और मनोभाव है जो यथार्थवादी दृष्टिकोण पर आधारित आनुभविक अध्ययन द्वारा मानव व्यवहार का अध्ययन कर राजनीतिशास्त्र को विशुद्ध विज्ञान बनाना चाहता है।
प्रश्न 17. व्यवहारवाद को परिभाषित कीजिए।
उत्तर- डेविड ईस्टन के अनुसार, "व्यवहारवाद वास्तविक व्यक्ति पर अपना समस्त ध्यान केन्द्रित करता है, व्यवहारवाद के अध्ययन की इकाई मानव का ऐसा व्यवहार है जिसका प्रत्येक व्यक्ति द्वारा पर्यवेक्षण, मापन और सत्यापन किया जा सकता है। व्यवहारवाद राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन से राजनीति की संरचनाओं, प्रक्रियाओं आदि के बारे में वैज्ञानिक व्याख्याएँ विकसित करना चाहता है।"
प्रश्न 18. व्यवहारवाद का संस्थापक कौन था ?
उत्तर- व्यवहारवाद का संस्थापक डेविड ईस्टन था।
प्रश्न 19. डेविड ईस्टन ने व्यवहारवाद की कौनसी बौद्धिक आधारशिलाएँ बताई हैं?
अथवा
व्यवहारवाद के चार प्रमुख लक्षण/विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- (i) नियमन, (ii) सत्यापन, (iii) तकनीकें, (iv) परिमाणीकरण, (v) क्रमबद्धीकरण,
(vi) मूल्य-निर्धारण, (vii) विशुद्ध विज्ञान, और (viii) एकीकरण।
प्रश्न 20. व्यवहारवाद के कोई दो आलोचनात्मक बिन्दुओं को लिखिए। अथवा
व्यवहारवाद के दो दोष लिखिए।
उत्तर- (1) व्यवहारवादियों के कथन एवं आचरण में अन्तर्विरोध दिखाई पड़ता है।
एकतरफ वे मूल्य-निरपेक्ष अध्ययन पर जोर देते हैं तो दूसरी तरफ तानाशाही शासन की • तुलना में उदारवादी लोकतंत्र की श्रेष्ठता को स्वयं सिद्ध मानते हैं।
(2) व्यवहारवाद में शब्दाडम्बर का दोष व्याप्त है, उनके तर्क अर्थहीन और शब्द-जाल दिखाई पड़ते हैं।
प्रश्न 21. उत्तर-व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान को एक 'कर्मनिष्ठ विज्ञान' क्यों मानते हैं?
उत्तर- राजनीति विज्ञान का दायित्व है कि शोध क्रियात्मक हो तथा इसके द्वारा समाज का पुनर्निर्माण हो एवं समस्याओं का हल खोजा जाए। उत्तर-व्यवहारवादियों का मत है कि ज्ञान व्यावहारिक रूप से सार्थक होना चाहिए जिससे समसामयिक समस्याएँ सुलझाई जा सकें। अतः राजनीति विज्ञान मनन विज्ञान के स्थान पर 'कर्मनिष्ठ विज्ञान' है।
प्रश्न 22. उत्तर-व्यवहारवादी क्रान्ति का उद्घोष क्या हैं ?
उत्तर- उत्तर-व्यवहारवादी क्रान्ति का उद्घोष है- उपादेयता एवं कार्य।
प्रश्न 23. उत्तर-व्यवहारवादी क्रांति के उदय के दो प्रमुख कारण लिखिए।
उत्तर- उदय के कारण (1) व्यवहारवादियों ने राजनीति विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान बनाने की असफल कोशिश की। (2) व्यवहारवाद ने मूल्यों की उपेक्षा की तथा केवल तथ्यों को ही महत्व दिया, इसलिए उत्तर-व्यवहारवाद का उदय हुआ।
प्रश्न 24. व्यवहारवाद तथा उत्तर-व्यवहारवाद में दो अन्तर बताइए।
उत्तर- (1 ) व्यवहारवाद ने राजनीतिक अध्ययन में केवल तथ्यों के महत्व को स्वीकारा है,जबकि उत्तर-व्यवहारवाद ने तथ्य एवं मूल्य दोनों के महत्व को स्वीकारा है। (2) व्यवहारवाद' सार से पहले तकनीक' को महत्व देता है, जबकि उत्तर-व्यवहारवाद 'तकनीक से पहले सार' को महत्व देता है।
प्रश्न 25. राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के मध्य संबंध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र दोनों एक-दूसरे के अति निकट हैं। दोनों के मध्य संबंध (1) दोनों विषयों के अध्ययन की मूल इकाई मनुष्य है।
(2) दोनों विषयों के घनिष्ठ सम्बन्धों पर ही राष्ट्र का भविष्य टिका रहता है।
(3) दोनों विषय मानव कल्याण से सम्बन्धित पहलू के अध्ययन पर जोर देते हैं।
(4) आर्थिक विकास और समृद्धि राजनैतिक विकास की कुंजी है।
प्रश्न 26. राजनीतिशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में कोई दो अन्तर बताईए। उत्तर- (i) राजनीतिशास्त्र का सम्बन्ध मूल्यों से है जबकि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध कीमतों सेहै। (ii) राजनीतिशास्त्र का सम्बन्ध सजीव वस्तुओं (मानव) से है, जबकि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध निर्जीव वस्तुओं से है।
प्रश्न 27. राजनीति विज्ञान एवं दर्शनशास्त्र के मध्य दो अन्तर बताइए।
उत्तर-(1) दर्शनशास्त्र सम्पूर्ण जीवन, जगत और सृष्टि के नियामक तत्त्व का अध्ययन करता है जबकि राजनीति विज्ञान के अध्ययन का क्षेत्र मुख्यतया मनुष्य का राजनीतिक जीवन और राजनीतिक विश्व है। (2) राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध मुख्यतया साकार, मूर्त व प्रत्यक्ष से है जबकि दर्शनशास्त्र का सम्बन्ध मुख्यतया निराकार, अमूर्त व अप्रत्यक्ष से है।
प्रश्न 28. राजनीति विज्ञान एवं इतिहास में कोई दो अन्तर लिखिए/बताइए।
उत्तर- (i) इतिहास का क्षेत्र व्यापक है और राजनीति विज्ञान का क्षेत्र संकुचित है।
(ii) इतिहास वर्णनात्मक है, राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक है।
प्रश्न 29. राजनीति विज्ञान के लिए इतिहास की क्या उपयोगिता है?
उत्तर- इतिहास ही राजनीति के सभी सिद्धान्तों तथा राजनीतिक गतिविधियों का उद्गम है। सभी सिद्धान्तों को राजनीतिक बनाने के लिए इतिहास से प्राप्त सामग्री का सहारा लेना पड़ता है।
प्रश्न 30. समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान के बीच सम्बन्ध बताइए।
उत्तर- दल, वर्ग, गुट, संस्थाएँ और सभाएँ सभी राजनीति से भी उतने ही सम्बन्धित हैं जितने समाजशास्त्र से। इसी प्रकार अनेक सामाजिक क्रियाकलाप, जैसे परिवर्तन, संघर्ष, समाजीकरण आदि, राजनीतिक अध्ययन का अंग बन चुके हैं।
प्रश्न 31. राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर- (1) राजनीति विज्ञान एक आदर्शपरक विज्ञान है, जबकि समाजशास्त्र एक वर्णनात्मक विज्ञान है। (2) राजनीति विज्ञान मानव की केवल चेतन कार्यप्रणाली का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र मनुष्य की अचेतन कार्यविधि का भी अध्ययन करता है।
प्रश्न 32. राजनीति विज्ञान में शक्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- राजनीति विज्ञान में शक्ति एक केन्द्रीय विषय है। राजनीतिशास्त्रियों ने शक्ति को 'प्रभावित करने की क्षमता' के रूप में अभिव्यक्त किया है। कुछ विचारकों का मत है कि शक्ति राज्य अथवा समुदाय में निहित तत्त्व है। कुछ अन्य विचारकों के अनुसार शक्ति व्यक्ति की विशेषता है।
प्रश्न 33. उत्तर- शक्ति की अवधारणा के बारे में हेरल्ड लासवेल के विचार बताइए।
हेरल्ड लासवेल ने राजनीति विज्ञान को 'शक्ति का विज्ञान' बताया है। लासवेल के अनुसार राजनीति विज्ञान का विषय शक्ति की प्रक्रियाओं का अध्ययन है। शक्ति की निर्णय-निर्माण की प्रक्रियाओं में सहभागिता है। शक्ति अपने आप में एक मूल्य है और दूसरे मूल्यों की उपलब्धि का एक साधन भी। राजनीतिक सम्बन्धों का लक्ष्य सदा ही मनुष्यों के द्वारा शक्ति की खोज है। शक्ति वितरणात्मक है और राजनीति विज्ञान का लक्ष्य यह निर्धारित करना है कि उसका वितरण कैसे और किस आधार पर हो। इस प्रकार शक्ति राजनीति का मुख्य सार है।
प्रश्न 34. शक्ति को परिभाषित कीजिए।
उत्तर- दूसरों को प्रभावित कर सकने की क्षमता का नाम ही शक्ति है। प्रायः विद्वानों ने शक्ति को प्रभावित करने की क्षमता के रूप में अभिव्यक्त किया है। आर्गेन्सकी केअनुसार, "शक्ति दूसरे के आचरण को अपने लक्ष्यों के अनुसार प्रभावित करने की क्षमता है।" राबर्ट ए डहल, हेरल्ड लासवेल आदि विद्वानों ने मानवीय व्यवहार में परिवर्तन लाने की क्षमता को शक्ति कहा है।
प्रश्न 35. शक्ति की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- (1) शक्ति विभिन्न व्यक्तियों अथवा व्यक्तियों से बने समूहों के बीच सम्बन्धों को प्रकट करती है। (2) शक्ति स्वयं में एक इकाई है किन्तु प्रयोग की दृष्टि से शक्ति के दो पक्ष - (i) वास्तविक शक्ति, तथा (ii) सम्भावित शक्ति, होते हैं।
प्रश्न 36. शक्ति को प्रयोग में लाने के विभिन्न तरीकों/प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर- शक्ति को प्रयोग में लाने के विभिन्न तरीके-
(1) समझाना (Persuasion)- शक्ति को प्रयोग में लाने का सबसे सरल तरीका एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र को समझाना ही है।
(2) प्रलोभन (Rewards)- इस तरीके में एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को लालच का वचन देकर उनके व्यवहार पर प्रभाव डालने की कोशिश करता है। (3) दण्ड (Punishment)-शक्ति को प्रयोग में लाने का तीसरा तरीका दण्ड की धमकी देना है।
(4) बल या शक्ति (Force) शक्ति के प्रयोग. के साधन के रूप में बल प्रयोग का सहारा अंतिम हथियार के रूप में लिया जाता है।
प्रश्न 37. शक्ति के स्रोत क्या हैं? अथवा शक्ति के प्रमुख स्त्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- शक्ति के प्रमुख स्रोत हैं- (i) ज्ञान, (ii) धन, (iii) संगठन, (iv) व्यक्तित्व, (v) विश्वास, (vi) बल, (vii) सत्ता, (viii) करिश्मा, (ix) विचार, तथा (x) सामाजिक स्तर आदि।
प्रश्न 38. सत्ता (अधिसत्ता) से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर- सत्ता वह शक्ति है, जो स्वीकृत, सम्मानित, ज्ञात एवं औचित्यपूर्ण हो। "अधिकार- सत्ता निर्णय लेने, आदेश देने तथा उनका पालन करवाने की वह शक्ति, स्थिति या अधिकार है, जिसे अधीनस्थों द्वारा स्वीकार कर लिया गया है और संगठनात्मक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अधीनस्थों द्वारा जिसका पालन आवश्यक होता है।
प्रश्न 39. मैक्स वेबर के अनुसार सत्ता के प्रकार बताइए। अथवा
वेबर के अनुसार सत्ता (अधिसत्ता) के तीन प्रकार बताइए।
उत्तर- मैक्स वेबर ने सत्ता के तीन प्रकार बताये हैं (i) परम्परागत सत्ता- परम्परा अथवा जिसका प्रयोग होता रहा हो। (ii) वैधानिक सत्ता- युक्तियुक्त कानून जिसे अधीनस्थ औचित्यपूर्ण समझता है। (iii) करिश्मात्मक सत्ता सत्ता का वह प्रकार है जो व्यक्तिगत प्रभाव पर आधारित है।
प्रश्न 40. शक्ति, सत्ता व वैधता में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर- शक्ति, सत्ता व वैधता का सम्बन्ध मानव की विभिन्न मूल प्रवृत्तियों से है। मानव की इन मूल प्रवृत्तियों में जो भिन्नता तथा पारस्परिक अनुपूरकता पाई जाती है, उसे शक्ति, सत्ता तथा वैधता के तत्त्वों में देखा जा सकता है। मानव जीवन की तरह ही राज-व्यवस्था में भी शक्ति, सत्ता तथा वैधता तीन भिन्न तत्त्व होकर भी एक-दूसरे के अनुपूरक दिखाई पड़ते हैं, जैसे-लालसा एवं सत्ता प्राप्त करना।
प्रश्न 41. वैधता का संकट क्या है?
उत्तर- वैधता का संकट, परिवर्तन का संकट है। जब सरकारें बदली परिस्थितियों तथा समय के अनुरूप स्वयं को ढाल नहीं पाती तो वैधता का संकट उत्पन्न हो जाता है। दूसरे शब्दों में, राजनीतिक मूल्य एवं विश्वास ही वे आधार हैं जो किसी राजव्यवस्था को औचित्यपूर्णता प्रदान करते हैं, अतः जब इन मूल्यों व विश्वासों के बारे में मतभेद होने के कारण किसी राजव्यवस्था में राजनीतिक गतिरोध अथवा तीव्र विरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो वह 'वैधता का संकट' (Crisis of legitimacy) कहलाता है।
प्रश्न 42. संविधानवाद से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- संविधान में निहित मान्यताओं, मूल्यों और राजनीतिक आदर्शों की प्राप्ति के लिए शासकों को नियमित अधिकार क्षेत्र में ही रहने के लिए बाध्य करने की संवैधानिक नियन्त्रण व्यवस्था को संविधानवाद कहा जाता है। सीधे शब्दों में 'सीमित शक्तियों वाला शासन' ही संविधानवाद होता है।
प्रश्न 43. संविधानवाद की अवधारणा को परिभाषित कीजिए
उत्तर- जे.एस. राऊसैक के अनुसार, "एक अवधारणा के रूप में संविधानवाद अनिवार्य रूप से सीमित सरकार तथा शासन व शासित के ऊपर नियंत्रण की व्यवस्था है।
प्रश्न 44. संवैधानिक सरकार का क्या अर्थ है?
उत्तर- संवैधानिक सरकार वह सरकार होती है जो संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार गठित, सीमित तथा नियन्त्रित होती है एवं व्यक्ति विशेष की इच्छाओं के विरुद्ध केवल कानून के अनुसार संचालित होती है। दूसरे शब्दों में, निरंकुश शासन के विपरीत नियमानुकूल शासन ही संविधानवाद है।
प्रश्न 45. 'संविधानवाद' के सिद्धान्त की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- (1) संविधानवाद मूल्य सम्बद्ध अवधारणा है जिसका सम्बन्ध राष्ट्र के जीवन दर्शन से है। (2) संविधानवाद संस्कृति सम्बंधित अवधारणा है। हर देश के आदर्श, मूल्य व विचारधाराएँ उस देश की संस्कृति की ही उपज होते हैं। (3) संविधानवाद गत्यात्मक अवधारणा है। यह समाज के वर्तमान में प्रयुक्त मूल्यों के साथ ही उसकी भविष्य की आकांक्षाओं का प्रतीक भी होती है।
प्रश्न 46. संविधानवाद का उद्देश्य क्या है?
उत्तर- शासक वर्ग की शक्तियों पर प्रभावी कानूनी नियन्त्रण लगाना, ताकि शासक वर्ग मनमाना आचरण न कर सके, संविधानवाद का उद्देश्य है।
प्रश्न 47. संविधानवाद की अवधारणाओं का एक-एक उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर- संविधानवाद की मुख्य दो अवधारणाएँ हैं- (i) उदार या पश्चिमी, व (ii) साम्यवादी। ग्रेट ब्रिटेन उदार संविधानवाद का और चीन साम्यवादी संविधानवाद का उदाहरण है।
प्रश्न 48. संविधान और संविधानवाद में कोई दो अन्तर बताइए।
(1) संविधान में साधनों की सुव्यवस्था को प्रधानता दी जाती है जबकि संविधानवाद में लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्रधानता दी जाती है। (2) संविधान एक संगठन है जबकि संविधानवाद एक अवधारणा है।
प्रश्न 49. लोकतांत्रिक राज्य में प्रत्यावर्तन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- लोकतांत्रिक राज्य में प्रत्यावर्तन का अर्थ है- जन-प्रतिनिधियों या निर्वाचित पदाधिकारियों को अपने पद से वापस बुलाना। जब जन-प्रतिनिधि या निर्वाचित पदाधिकारी अत्याचारी, भ्रष्ट या अयोग्य हो जाते हैं तो जनता की निश्चित संख्या उन्हें वापस बुला सकती है।
प्रश्न 50. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को परिभाषित कीजिए। उत्तर- जे.एस. मिल के अनुसार, "अप्रत्यक्ष या अप्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र वह होतो है जिसमें सम्पूर्ण जनता अथवा उसका बहुसंख्यक भाग शासन की शक्ति का प्रयोग अपने उन प्रतिनिधियों द्वारा करती है, जिन्हें वह समय-समय पर चुनती है।
प्रश्न 51. प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का क्या अर्थ है? प्रत्यक्ष प्रजातंत्र के किन्हीं तीन उपकरणों/ साधनों के नाम लिखिए।
उत्तर- जब प्रभुसत्तावान जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन कार्यों में भाग लेती है, नीति निर्धारित करती है, कानून बनाती है और प्रशासनाधिकारी नियुक्त कर उन पर नियन्त्रण रखती है तो वह प्रत्यक्ष प्रजातंत्र कहलाता है। उदाहरण के लिए, स्विट्जरलैण्ड । प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के उपकरण निम्न हैं- (1) लोकनिर्णय अथवा जनमत संग्रह (Referen-dum), (2) आरम्भक (Initiative), (3) प्रत्यावर्तन (Recall)। प्रश्न 52. प्रजातंत्र (लोकतंत्र) के कोई चार गुण एवं दोष बताइए।
उत्तर- प्रजातंत्र लोकतंत्र के गुण (1) जनकल्याण की साधना, (2) जनता का नैतिक उत्थान, (3) क्रान्ति से सुरक्षा, (4) स्वतन्त्रताओं की सुरक्षा।
प्रजातंत्र/लोकतंत्र के अवगुण (1) अयोग्यता की पूजा होना, (2) भ्रष्ट शासन व्यवस्था का होना, (3) सार्वजनिक धन और समय का अपव्यय होना, (4) सर्वतोमुखी प्रगति की असम्भावना होना।
प्रश्न 53. लोकतंत्रीय सरकार दलीय सरकार है। कोई दो कारण बताइए।
उत्तर- (i) विशाल क्षेत्रफल व जनसंख्या वाले वर्तमान लोकतंत्रीय राज्यों में प्रतिनिध्यात्मक प्रजातंत्र ही संभव है और प्रतिनिध्यात्मक प्रजातंत्र दलों के माध्यम से ही कार्य करता है।
(ii) राजनीतिक दल आर्थिक और राजनीतिक कार्यक्रम पर आधारित होते हैं, जो प्रायः धर्म, जाति, भाषा तथा प्रान्तीय भेदों पर आधारित नहीं होते। अपने भेदभाव रहित आर्थिक व राजनीतिक कार्यक्रम के आधार पर वे जनता में राजनीतिक जागरूकता लाते हैं तथा चुनाव लड़कर सरकार बनाते हैं या प्रतिपक्ष में कार्य करते हैं।
प्रश्न 54. 'अधिनायकतंत्र या तानाशाही' का अर्थ बताइए।
उत्तर- अधिनायकतंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें शासन की सम्पूर्ण शक्ति एक व्यक्ति (शासक) के हाथ में केन्द्रित रहती है और वह उसका प्रयोग मनमाने ढंग से करता है। यह व्यक्ति सर्वोच्च होता है और किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है।
प्रश्न 55. तानाशाही (निरंकुशतंत्र) को परिभाषित कीजिए।
उत्तर- न्यूमैन के अनुसार, "तानाशाही या निरंकुशतंत्र से अभिप्राय एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह के शासन से है जो राज्य में सत्ता पर बलपूर्वक अधिकार कर लेते हैं और उसका असीमित रूप से प्रयोग करते हैं।
प्रश्न 56. अधिनायकवाद की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- (i) यह एक पुलिस राज्य होता है। (ii) इसमें शक्तियों का केन्द्रीकरण होता है। (iii) इसमें एक सर्वाधिकारवादी राजनैतिक दल होता है।
Next Part 2 coming soon

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